कवि परिचय =>
सूरदास हिंदी काव्य -जगत् के सूर्य माने जाते हैं! क्रष्ण -भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित करने में उनका विशेष योगदान है|उनके जीवन-व्रत्त के संबंध में विद्वानो में मतभेद हैं|अधिकतर विद्वान सूरदास का जन्म सन् 1483ई.(संवत् 1540 वि.)और निधन संवत् 1620 वि.मानते हैं|उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम के एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हूआ | वें जन्मांध थे |उनका कंठ बजाय मधुर था |वे पद-रचना करके गाया करते थें|बाद में वे आगरा और मथुरा के बीच स्थित गऊघाट पर जाकर रहने लगे |वहीं श्री वल्लभाचार्य जी कें संपर्क में आए और पुष्टिमार्ग में दीक्षित हूए |उन्ही की प्रेरणा से सूरदास नें दास्य एवं दैन्य भाव कें पदो की रचना छोड़कर वात्सल्य, माधुर्य भाव और सख्य भाव के पदो की रचना करना आरंभ किया |पुष्टि मार्ग के अष्टछाप भक्त कवियों में सूरदास अग्रगण्य थे |पुष्टि मार्ग में भगवान की क्रपा या अनुग्रह का अधिक महत्व हैं| इसें काव्य का विषय बनाकर सूरदास अमर हो गए |जब सूरदास का अंतिम समय निकट था तब श्री विट्ठलनाथ जी ने कहा था -- "पुष्टि मार्ग को जहाज जात है, जाय कछू लैनों होय सो लेउ|"
काव्य परिचय =>
सूरदास जी की रचनाओं में सूरसागर, सूरसारावली ओर साहित्य लहरी तो विद्वानो ने मुख्तय. प्रमाणिता प्रधान की |परन्तु सुरदास द्वारा रचित तीने क्रतियो में सूरसागर की जितनी ख्याति प्राप्त हुई है, उतनी शेष दो क्रतियो की नही हुई |
भाव पक्ष =>
सूरदास क्रष्ण भक्ति की सगुण शाखा के कवि थें|उनकी भक्ति को दो भागो में विभाजित करके देखना अधिक उपयुक्त होगा -एक श्री वल्लभाचार्य जी सें साशात्कार के पूर्व की भक्ति जिसमें दैन्य भावना और सूर की गुड़गिडा़हट अधिक हैं| दूसरी, श्री वल्लभाचार्य जी सें संपर्क के बाद की भक्ति अर्थात पुष्टि मार्गीय भक्ति, जिसमें सख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति है|उन्होंने विनय, वात्सल्य और श्रृंगार तीनो प्रकार के पदों की रचना की थी |उन्होनें संयोग और वियोग दोनो प्रकार के पद रचे | ' सूरसागर ' का भ्रमण -गीत प्रसंग वियोग शृंगार का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता हैं| सूर का वात्सल्य वर्णन हिंदी साहित्य की एक अमूल्य निधि मानी जाती है|यें वात्सल्य की संपूर्ण जानकारी रखनें वाले कवि थें|
कला पक्ष =>
सूरदास जी की काव्य भाषा शैली ब्रज हैं|लोकोक्तिया और मुहावरों का भी सहज रूप में प्रयोग किया हैं|उनकें पदों में लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्तियो का समुचित प्रयोग मिलता हैं|'दुरूह माने जाने वाले पद 'सूरसारावली' में दृष्टिकूट पद हैं जो दुरूह माने जाते हैं |विरह वर्णन में व्यंजना शब्द -शक्ति का प्रयोग अधिक हैं|सूर के सभी पद गेय हैं|उनकी शैली में भी विविधता हैं|उन्होनें अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेषा, रूपक आदि अलंकारो का प्रयोग किया गया हैं|
Is Post ¦ लेखक
=> राजेश बुगालियॉ
संपर्क सूत्र =9772753986
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सूरदास हिंदी काव्य -जगत् के सूर्य माने जाते हैं! क्रष्ण -भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित करने में उनका विशेष योगदान है|उनके जीवन-व्रत्त के संबंध में विद्वानो में मतभेद हैं|अधिकतर विद्वान सूरदास का जन्म सन् 1483ई.(संवत् 1540 वि.)और निधन संवत् 1620 वि.मानते हैं|उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम के एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हूआ | वें जन्मांध थे |उनका कंठ बजाय मधुर था |वे पद-रचना करके गाया करते थें|बाद में वे आगरा और मथुरा के बीच स्थित गऊघाट पर जाकर रहने लगे |वहीं श्री वल्लभाचार्य जी कें संपर्क में आए और पुष्टिमार्ग में दीक्षित हूए |उन्ही की प्रेरणा से सूरदास नें दास्य एवं दैन्य भाव कें पदो की रचना छोड़कर वात्सल्य, माधुर्य भाव और सख्य भाव के पदो की रचना करना आरंभ किया |पुष्टि मार्ग के अष्टछाप भक्त कवियों में सूरदास अग्रगण्य थे |पुष्टि मार्ग में भगवान की क्रपा या अनुग्रह का अधिक महत्व हैं| इसें काव्य का विषय बनाकर सूरदास अमर हो गए |जब सूरदास का अंतिम समय निकट था तब श्री विट्ठलनाथ जी ने कहा था -- "पुष्टि मार्ग को जहाज जात है, जाय कछू लैनों होय सो लेउ|"
काव्य परिचय =>
सूरदास जी की रचनाओं में सूरसागर, सूरसारावली ओर साहित्य लहरी तो विद्वानो ने मुख्तय. प्रमाणिता प्रधान की |परन्तु सुरदास द्वारा रचित तीने क्रतियो में सूरसागर की जितनी ख्याति प्राप्त हुई है, उतनी शेष दो क्रतियो की नही हुई |
भाव पक्ष =>
सूरदास क्रष्ण भक्ति की सगुण शाखा के कवि थें|उनकी भक्ति को दो भागो में विभाजित करके देखना अधिक उपयुक्त होगा -एक श्री वल्लभाचार्य जी सें साशात्कार के पूर्व की भक्ति जिसमें दैन्य भावना और सूर की गुड़गिडा़हट अधिक हैं| दूसरी, श्री वल्लभाचार्य जी सें संपर्क के बाद की भक्ति अर्थात पुष्टि मार्गीय भक्ति, जिसमें सख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति है|उन्होंने विनय, वात्सल्य और श्रृंगार तीनो प्रकार के पदों की रचना की थी |उन्होनें संयोग और वियोग दोनो प्रकार के पद रचे | ' सूरसागर ' का भ्रमण -गीत प्रसंग वियोग शृंगार का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता हैं| सूर का वात्सल्य वर्णन हिंदी साहित्य की एक अमूल्य निधि मानी जाती है|यें वात्सल्य की संपूर्ण जानकारी रखनें वाले कवि थें|
कला पक्ष =>
सूरदास जी की काव्य भाषा शैली ब्रज हैं|लोकोक्तिया और मुहावरों का भी सहज रूप में प्रयोग किया हैं|उनकें पदों में लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्तियो का समुचित प्रयोग मिलता हैं|'दुरूह माने जाने वाले पद 'सूरसारावली' में दृष्टिकूट पद हैं जो दुरूह माने जाते हैं |विरह वर्णन में व्यंजना शब्द -शक्ति का प्रयोग अधिक हैं|सूर के सभी पद गेय हैं|उनकी शैली में भी विविधता हैं|उन्होनें अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेषा, रूपक आदि अलंकारो का प्रयोग किया गया हैं|
Is Post ¦ लेखक
=> राजेश बुगालियॉ
संपर्क सूत्र =9772753986
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